हनुमानजी को तत्काल प्रसन्न करने के लिये उनके बारह नामों की स्तुति करें । By वनिता कासनियां पंजाब अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥हनुमानजी से बड़ा भगवान का दूसरा कोई भक्त नहीं है। हनुमानजी अशरण की शरण, दीनजनों के सहाय, मंगलकारी और संकटहारी हैं। भक्तों के कष्ट से व्याकुल होकर उनके दु:ख-दारिद्रय, आधि-व्याधि तथा समस्त विपत्तियों को दूर करने के लिए वे सदा तैयार रहते हैं; इसलिए जो लोग हनुमानजी के नामजप का आश्रय लेते हैं वे उनकी कृपा से निहाल हो जाते हैं।आनन्दरामायण में दी गयी हनुमानजी के बारह नामों की स्तुति अद्भुत चमत्कारी हैं। इनका नित्य पाठ-स्मरण करने से मनुष्य कठिन-से-कठिन परिस्थितियों से ऐसे निकल जाता है जैसे गाय के खुर से बने गड्डे को लांघा हो। आवश्यकता केवल हनुमानजी और उनके नामों में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखने की है। आनन्दरामायण में दी गयी हनुमानजी के बारह नामों की स्तुति ।हनुमानंजनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिंगाक्षोऽमितविक्रम:।। उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:। लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।। (आनन्दरामायण ८।१३।८-११)हनुमानजी के बारह नाम और उनका अर्थ इस स्तुति में दिए गए बारह नाम हनुमानजी के गुणों को दर्शाते हैं। श्रीराम और सीताजी के लिए हनुमानजी ने जो सेवाकार्य किया, उन्हीं का वर्णन इन नामों में हैं–1. हनुमान–इन्द्र के वज्र से जिनकी बायीं हनु (ठुड्डी) टूट गयी है, उस टूटी हुई विशेष हनु के कारण वे ‘हनुमान’ कहलाते हैं।2. अंजनीसूनु–कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रदोषकाल में अंजनादेवी के गर्भ से हनुमानजी का जन्म हुआ था इसलिए हनुमानजी ‘अंजनीसूनु’, ‘आंजनेय’ या ‘अंजनीसुत’ कहलाते हैं।3. वायुपुत्र–हनुमानजी वायुदेव के मानस औरस पुत्र हैं, इसलिए उन्हें ‘वातात्मज’, ‘पवनपुत्र’, ‘वायुनन्दन’ और ‘मारुति’ नामों से जाना जाता है।4. महाबल–हनुमानजी अत्यन्त बलशाली हैं। श्रीरामजी ने हनुमानजी के बल का अगस्त्यमुनि से वर्णन करते हुए कहा–’रावण और वाली के बल की कहीं तुलना नहीं है; परन्तु मेरा विचार है कि दोनों का बल भी हनुमानजी के बल की बराबरी नहीं कर सकता।’5. रामेष्ट–हनुमानजी भगवान श्रीरामजी के प्रिय भक्त हैं।6. फाल्गुनसख–फाल्गुन का अर्थ है अर्जुन और सख का अर्थ है मित्र अर्थात् अर्जुन के मित्र। महाभारतयुद्ध के समय हनुमानजी अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजित थे। उन्होंने अर्जुन की सहायता की इसलिए उन्हें अर्जुन का मित्र कहा गया है।7. पिंगाक्ष–श्रीहनुमान के नेत्र थोड़ी लालिमा से युक्त पिंग (पीले) रंग के हैं।8. अमितविक्रम–अमित का अर्थ है बहुत अधिक और विक्रम का अर्थ है पराक्रमी। हनुमानजी ने अपने पराक्रम के बल पर ऐसे कार्य किए जिन्हें करना देवताओं के लिए भी कठिन था इसलिए उन्हें अमितविक्रम कहा गया है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में हनुमानजी ने अपने पराक्रम के विषय में स्वयं गर्जना की है–’मैं इस विशाल लंका को वानरी के बच्चे के समान छोटा समझता हूँ। समुद्र को मूत्र के समान, समस्त पृथ्वी को छोटे मिट्टी के पात्र (सकोरे) के समान तथा असंख्य सैनिकों से युक्त रावण को चींटियों के झुंड के तुल्य मानता हूँ।’9. उदधिक्रमण–उदधिक्रमण का अर्थ है समुद्र को लांघने (अतिक्रमण करने) वाले। मनुष्य को जीवन में हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। संघर्ष से भयभीत होने वाला व्यक्ति विजय से पहले ही पराजय स्वीकार कर लेता है। परन्तु प्रभु-विश्वासी मनुष्य को इन संघर्षों की लहरों पर भी आनन्द का संगीत सुनाई देता है। रामदूत हनुमान द्वारा समुद्र लांघने का कार्य हमारे मन में संघर्षों पर विजय पाने की प्रेरणाएं जगाता है।10. सीताशोकविनाशन–माता सीता के शोक का निवारण करने के कारण हनुमानजी को सीताशोकविनाशन कहा जाता है।11. लक्ष्मणप्राणदाता–जब रावण के पुत्र इंद्रजीत (मेघनाद) ने शक्ति का उपयोग कर लक्ष्मण को मूर्च्छित कर दिया, तब हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आए थे। उसी बूटी के प्रभाव से लक्ष्मण को होश आया था; इसलिए हनुमानजी को लक्ष्मणप्राणदाता भी कहा जाता है।12. दशग्रीवदर्पहा–दशग्रीव यानी रावण और दर्पहा यानी घमंड तोड़ने वाला। दशग्रीवदर्पहा का अर्थ है रावण का घमंड तोड़ने वाला। हनुमानजी ने लंका जाकर सीताजी का पता लगाया और रावण के पुत्र अक्षयकुमार का वधकर लंकादहन किया। इस प्रकार हनुमानजी ने कई बार रावण का घमंड तोड़ा था। इसलिए इनको दशग्रीवदर्पहा भी कहा जाता है।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमहनुमानजी के बारह नामों के पाठ का फल जब मन किसी अज्ञात भय से घबराता हो, किसी अनहोनी की आशंका हो या कोई भीषण संकट उपस्थित हो गया हो तो हनुमानजी के इन बारह नामों का प्रात:काल सोकर उठने पर या रात्रि को सोते समय अथवा यात्रा आरम्भ करते समय पाठ करना चाहिए इससे उस व्यक्ति के सारे भय दूर हो जाते हैं; क्योंकि हनुमानजी को ‘संकटमोचन’ कहा जाता है।भगवान श्रीराम ने भी संकट-समुद्र को हनुमानजी की सहायता से पार किया था। –कलिकाल में विशेषकर युवकों व बच्चों में हनुमानजी की उपासना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि हनुमानजी बुद्धि, बल और वीर्य प्रदान कर भक्तों की रक्षा करते हैं। हनुमानजी के बारह नामों का जप उनकी उपासना का सबसे सरल रूप है।–हनुमानजी के इन बारह नामों का जाप करते रहने से दरिद्रता और दु:खों का दहन होता है क्योंकि हनुमानजी अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता हैं। –इन नामों के जप से समस्त अमंगलों का नाश होता है। परिवार में दीर्घकाल तक सुख-शान्ति रहती है और मनुष्य के सभी मनोरथों की पूर्ति होती है। –मनुष्य को राजदरबार अर्थात् सरकारी झंझटों से मुक्ति मिल जाती है।–इन बारह नामों के उच्चारण करने से भूत-प्रेत पिशाच, यक्षराक्षस आदि भाग जाते हैं। –इन नामों के स्मरण करने से मनुष्य की मानसिक दुर्बलता दूर होती है। –हनुमानजी की नामोपासना करने से साधक में भी हनुमानजी के गुण–शूरवीरता, दक्षता, बल, धैर्य, विद्वता, नीतिज्ञान व पराक्रम आदि आ जाते हैं।–हनुमानजी के नामजप से मनुष्य बुद्धि, बल, कीर्ति, निर्भीकता, आरोग्य और वाक्यपटुता आदि प्राप्त करता है। –हनुमानजी भक्तों को रात-दिन कृपा का दान देते रहते हैं, उनके भय को मिटाते और क्लेशों को हर लेते हैं–नाशै रोग हरै सब पीरा, जपत निरन्तर हनुमत वीरा।।–इन बारह नामों के जप से दुष्टों और वैरियों का अंत हो जाता है और मनुष्य की हर तरह से रक्षा होती है। –हनुमानजी समस्त विघ्नों का निवारण कर आश्रितजनों का मन प्रसन्न कर देते हैं।मंगल-मूरत मारुत-नंदन। सकल-अमंगल मूल-निकंदन। जय सियाराम जय जय हनुमान।।*
हनुमानजी को तत्काल प्रसन्न करने के लिये उनके बारह नामों की स्तुति करें ।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥
हनुमानजी से बड़ा भगवान का दूसरा कोई भक्त नहीं है। हनुमानजी अशरण की शरण, दीनजनों के सहाय, मंगलकारी और संकटहारी हैं। भक्तों के कष्ट से व्याकुल होकर उनके दु:ख-दारिद्रय, आधि-व्याधि तथा समस्त विपत्तियों को दूर करने के लिए वे सदा तैयार रहते हैं; इसलिए जो लोग हनुमानजी के नामजप का आश्रय लेते हैं वे उनकी कृपा से निहाल हो जाते हैं।
आनन्दरामायण में दी गयी हनुमानजी के बारह नामों की स्तुति अद्भुत चमत्कारी हैं। इनका नित्य पाठ-स्मरण करने से मनुष्य कठिन-से-कठिन परिस्थितियों से ऐसे निकल जाता है जैसे गाय के खुर से बने गड्डे को लांघा हो। आवश्यकता केवल हनुमानजी और उनके नामों में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखने की है। आनन्दरामायण में दी गयी हनुमानजी के बारह नामों की स्तुति ।
हनुमानंजनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिंगाक्षोऽमितविक्रम:।। उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:। लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।। (आनन्दरामायण ८।१३।८-११)
हनुमानजी के बारह नाम और उनका अर्थ इस स्तुति में दिए गए बारह नाम हनुमानजी के गुणों को दर्शाते हैं। श्रीराम और सीताजी के लिए हनुमानजी ने जो सेवाकार्य किया, उन्हीं का वर्णन इन नामों में हैं–
1. हनुमान–इन्द्र के वज्र से जिनकी बायीं हनु (ठुड्डी) टूट गयी है, उस टूटी हुई विशेष हनु के कारण वे ‘हनुमान’ कहलाते हैं।
2. अंजनीसूनु–कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रदोषकाल में अंजनादेवी के गर्भ से हनुमानजी का जन्म हुआ था इसलिए हनुमानजी ‘अंजनीसूनु’, ‘आंजनेय’ या ‘अंजनीसुत’ कहलाते हैं।
3. वायुपुत्र–हनुमानजी वायुदेव के मानस औरस पुत्र हैं, इसलिए उन्हें ‘वातात्मज’, ‘पवनपुत्र’, ‘वायुनन्दन’ और ‘मारुति’ नामों से जाना जाता है।
4. महाबल–हनुमानजी अत्यन्त बलशाली हैं। श्रीरामजी ने हनुमानजी के बल का अगस्त्यमुनि से वर्णन करते हुए कहा–’रावण और वाली के बल की कहीं तुलना नहीं है; परन्तु मेरा विचार है कि दोनों का बल भी हनुमानजी के बल की बराबरी नहीं कर सकता।’
5. रामेष्ट–हनुमानजी भगवान श्रीरामजी के प्रिय भक्त हैं।
6. फाल्गुनसख–फाल्गुन का अर्थ है अर्जुन और सख का अर्थ है मित्र अर्थात् अर्जुन के मित्र। महाभारतयुद्ध के समय हनुमानजी अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजित थे। उन्होंने अर्जुन की सहायता की इसलिए उन्हें अर्जुन का मित्र कहा गया है।
7. पिंगाक्ष–श्रीहनुमान के नेत्र थोड़ी लालिमा से युक्त पिंग (पीले) रंग के हैं।
8. अमितविक्रम–अमित का अर्थ है बहुत अधिक और विक्रम का अर्थ है पराक्रमी। हनुमानजी ने अपने पराक्रम के बल पर ऐसे कार्य किए जिन्हें करना देवताओं के लिए भी कठिन था इसलिए उन्हें अमितविक्रम कहा गया है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में हनुमानजी ने अपने पराक्रम के विषय में स्वयं गर्जना की है–’मैं इस विशाल लंका को वानरी के बच्चे के समान छोटा समझता हूँ। समुद्र को मूत्र के समान, समस्त पृथ्वी को छोटे मिट्टी के पात्र (सकोरे) के समान तथा असंख्य सैनिकों से युक्त रावण को चींटियों के झुंड के तुल्य मानता हूँ।’
9. उदधिक्रमण–उदधिक्रमण का अर्थ है समुद्र को लांघने (अतिक्रमण करने) वाले। मनुष्य को जीवन में हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। संघर्ष से भयभीत होने वाला व्यक्ति विजय से पहले ही पराजय स्वीकार कर लेता है। परन्तु प्रभु-विश्वासी मनुष्य को इन संघर्षों की लहरों पर भी आनन्द का संगीत सुनाई देता है। रामदूत हनुमान द्वारा समुद्र लांघने का कार्य हमारे मन में संघर्षों पर विजय पाने की प्रेरणाएं जगाता है।
10. सीताशोकविनाशन–माता सीता के शोक का निवारण करने के कारण हनुमानजी को सीताशोकविनाशन कहा जाता है।
11. लक्ष्मणप्राणदाता–जब रावण के पुत्र इंद्रजीत (मेघनाद) ने शक्ति का उपयोग कर लक्ष्मण को मूर्च्छित कर दिया, तब हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आए थे। उसी बूटी के प्रभाव से लक्ष्मण को होश आया था; इसलिए हनुमानजी को लक्ष्मणप्राणदाता भी कहा जाता है।
12. दशग्रीवदर्पहा–दशग्रीव यानी रावण और दर्पहा यानी घमंड तोड़ने वाला। दशग्रीवदर्पहा का अर्थ है रावण का घमंड तोड़ने वाला। हनुमानजी ने लंका जाकर सीताजी का पता लगाया और रावण के पुत्र अक्षयकुमार का वधकर लंकादहन किया। इस प्रकार हनुमानजी ने कई बार रावण का घमंड तोड़ा था। इसलिए इनको दशग्रीवदर्पहा भी कहा जाता है।
हनुमानजी के बारह नामों के पाठ का फल जब मन किसी अज्ञात भय से घबराता हो, किसी अनहोनी की आशंका हो या कोई भीषण संकट उपस्थित हो गया हो तो हनुमानजी के इन बारह नामों का प्रात:काल सोकर उठने पर या रात्रि को सोते समय अथवा यात्रा आरम्भ करते समय पाठ करना चाहिए इससे उस व्यक्ति के सारे भय दूर हो जाते हैं; क्योंकि हनुमानजी को ‘संकटमोचन’ कहा जाता है।
भगवान श्रीराम ने भी संकट-समुद्र को हनुमानजी की सहायता से पार किया था। –कलिकाल में विशेषकर युवकों व बच्चों में हनुमानजी की उपासना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि हनुमानजी बुद्धि, बल और वीर्य प्रदान कर भक्तों की रक्षा करते हैं। हनुमानजी के बारह नामों का जप उनकी उपासना का सबसे सरल रूप है।
–हनुमानजी के इन बारह नामों का जाप करते रहने से दरिद्रता और दु:खों का दहन होता है क्योंकि हनुमानजी अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता हैं। –इन नामों के जप से समस्त अमंगलों का नाश होता है। परिवार में दीर्घकाल तक सुख-शान्ति रहती है और मनुष्य के सभी मनोरथों की पूर्ति होती है। –मनुष्य को राजदरबार अर्थात् सरकारी झंझटों से मुक्ति मिल जाती है।
–इन बारह नामों के उच्चारण करने से भूत-प्रेत पिशाच, यक्षराक्षस आदि भाग जाते हैं। –इन नामों के स्मरण करने से मनुष्य की मानसिक दुर्बलता दूर होती है। –हनुमानजी की नामोपासना करने से साधक में भी हनुमानजी के गुण–शूरवीरता, दक्षता, बल, धैर्य, विद्वता, नीतिज्ञान व पराक्रम आदि आ जाते हैं।
–हनुमानजी के नामजप से मनुष्य बुद्धि, बल, कीर्ति, निर्भीकता, आरोग्य और वाक्यपटुता आदि प्राप्त करता है। –हनुमानजी भक्तों को रात-दिन कृपा का दान देते रहते हैं, उनके भय को मिटाते और क्लेशों को हर लेते हैं–नाशै रोग हरै सब पीरा, जपत निरन्तर हनुमत वीरा।।
–इन बारह नामों के जप से दुष्टों और वैरियों का अंत हो जाता है और मनुष्य की हर तरह से रक्षा होती है। –हनुमानजी समस्त विघ्नों का निवारण कर आश्रितजनों का मन प्रसन्न कर देते हैं।
मंगल-मूरत मारुत-नंदन। सकल-अमंगल मूल-निकंदन। जय सियाराम जय जय हनुमान।।*
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