सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

रामायण-रहस्य-94#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानमन्त्री सुमंत्र के दु:ख ने उन्हें इतना प्रभावित किया है कि उनकी आँखों की रौशनी फीकी पड़ गयी है, उनके कान बहरे हो गये हैं, उनकी बुद्धि बहरी हो गयी है, जीवित रहते हुए भी वे गूंगे हो गये हैं। ? कौशल्या मा, अगर बछड़े से मिलने के लिए गाय दौड़ती हुई आती है, तो मैं उन्हें क्या जवाब दूंगा? मैं महाराजा को कैसे आश्वस्त कर सकता हूं? मैं कैसे कह सकता हूं कि रामजी वन में रहे?रथ तमसा नदी के तट पर आया।लेकिन फिर भी वे अयोध्या में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं करते इसलिए पूरे दिन शहर के बाहर वे बैठ गए, और जब सांझ को अँधेरा हुआ, तो वे चुपके से नगर में प्रवेश कर गए और महल के किनारे पर चले गए। हुआ यूँ कि रामजी के वन जाने के बाद दशरथजी ने कहा- मैं कैकेयी के महल में नहीं रहना चाहता। मुझे कौशल महल में ले चलो। इसलिए उन्हें कौशल्या भवन में रखा गया था।सुमंत्र को देखकर दास इकट्ठे हो गए और उन्हें सूचना दी कि महाराजा कौशल्या महल में हैं। सुमंत्र अचेत अवस्था में दौड़ता हुआ प्रतीत होता है। उन्होंने दशरथ राजा को "राम-राम-सीता सीता" कहा।विलाप देखना। सुमंत्र को देख राजा की जान में जान आई, उसने उठकर सुमंत्र को गले से लगा लिया और पूछते हैं- सुमंत्र राम कहां है? सुमंत्रा की आंखों से आंसू छलक पड़े। राजा का दिल बैठ गया। हे सुमंत्र, मैं राम जेसे बेटे का पिता बनने के काबिल नहीं..तुम्हें मेरी ज़िंदगी चाहिए तो मुझे अभी या अभी राम दे दो राम के पास ले जाओ , नहीं तो मैं तुमसे सच कहता हूं, मैं जीना नहीं चाहता, मैं जी नहीं सकता। सुमंत्र राजा से कहता है, 'महाराजा, आप बुद्धिमान हैं, आप धैर्यवान हैं, आप नायक हैं। रात और दिन की तरह आते-जाते रहते हैं। लेकिन महापुरुष इन से प्र्भवित् नहीं रहते। तब सुमंत्र ने रामजी की यात्रा का वर्णन किया, निषादराजजी ने सेवा की बात की। राम-सीता को भी सन्देश सुनाया और उत्तर में रामजी ने कहा- मेरे पिता से मेरा प्रणाम कहो, और कहो कि हम सब तुम्हारी महिमा से कुशल हैं। सीताजी ने संदेश दिया था कि - मैं अयोध्या नहीं आ सकती, मैं अपने पति के बिना नहीं रह सकती। मेरी सास और ससुर के चरणों में मेरा प्रणाम कहो। बोलते-बोलते सुमन्त्र की आवाज थम गई और वे शोक से व्याकुल हो उठे। राजा ने सुमंत्र का वचन सुनते ही हे राम-हे राम बोलते-बोलते धरती पर गिर पड़े और जल से मछली की ओर निकल पड़े। वे उसकी ओर बढ़ने लगे, आस-पास के सभी लोग भी विलाप करने लगे। कौशल्या भी रो रही थी लेकिन हाइयू राजा को आश्वस्त करने की कोशिश करने लगा। "महाराज, राम-वीर के महान सागर को पार करने के लिए, हिम्मत रखो, धीरज रखो, नहीं तो सब कुछ डूब जाएगा। वनवास की अवधि समाप्त होने पर राम अवश्य आयेंगे। राजा आखिरी वाक्य जानता था "राम जरूर वापस आएंगे" इतना । इतना कहकर राजा फिर बेहोश हो गया। आधी रात को अचानक उसे होश आया,उसने आह भरी और कौशल्या से कहने लगा कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसी जन्म में उसकी मृत्यु हो जाती है। कौशल्याजी की बात सुनकर उनके मन में यह विचार आया कि इस प्रकार भी राजा के मन को आश्वस्त करना ही अच्छा है। दशरथ राजा कहते हैं - हे कौशल्या, अब मैं स्पष्ट रूप से देख सकता हूं - मैं अपने कर्मों का फल भोग रहा हूं।मुझे अब याद आया कि मैंने अनजाने में एक घातक पाप किया था, जिसका फल अब मैं भुगत रहा हूँ। जाने-अनजाने पाप तो भोगने ही पड़ते हैं, लेकिन अनजाने में जहर खा लिया जाए तो उसकी मृत्यु हो जाती है। कौशल्याजी शांति से सुन रहीहैं और दशरथ राजा अपने पाप का अवसर बता रहे हैं।

रामायण-रहस्य-94
#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान
मन्त्री सुमंत्र के दु:ख ने उन्हें इतना प्रभावित किया है कि उनकी आँखों की रौशनी फीकी पड़ गयी है, उनके कान बहरे हो गये हैं, उनकी बुद्धि बहरी हो गयी है, जीवित रहते हुए भी वे गूंगे हो गये हैं। ? कौशल्या मा, अगर बछड़े से मिलने के लिए गाय दौड़ती हुई आती है, तो मैं उन्हें क्या जवाब दूंगा? मैं महाराजा को कैसे आश्वस्त कर सकता हूं? मैं कैसे कह सकता हूं कि रामजी वन में रहे?

रथ तमसा नदी के तट पर आया।
लेकिन फिर भी वे अयोध्या में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं करते इसलिए पूरे दिन शहर के बाहर 
वे बैठ गए, और जब सांझ को अँधेरा हुआ, तो वे चुपके से नगर में प्रवेश कर गए और महल के किनारे पर चले गए। हुआ यूँ कि रामजी के वन जाने के बाद दशरथजी ने कहा- मैं कैकेयी के महल में नहीं रहना चाहता। 

मुझे कौशल महल में ले चलो। इसलिए उन्हें कौशल्या भवन में रखा गया था।
सुमंत्र को देखकर दास इकट्ठे हो गए और उन्हें सूचना दी कि महाराजा कौशल्या महल में हैं। 
सुमंत्र अचेत अवस्था में दौड़ता हुआ प्रतीत होता है। उन्होंने दशरथ राजा को "राम-राम-सीता सीता" कहा।
विलाप देखना। सुमंत्र को देख राजा की जान में जान आई, उसने उठकर सुमंत्र को गले से लगा लिया 
और पूछते हैं- सुमंत्र राम कहां है? सुमंत्रा की आंखों से आंसू छलक पड़े। राजा का दिल बैठ गया। हे सुमंत्र, मैं राम 

 जेसे बेटे का पिता बनने के काबिल नहीं..तुम्हें मेरी ज़िंदगी चाहिए तो मुझे अभी या अभी राम दे दो 
राम के पास ले जाओ , नहीं तो मैं तुमसे सच कहता हूं, मैं जीना नहीं चाहता, मैं जी नहीं सकता। सुमंत्र राजा से कहता है, 'महाराजा, आप बुद्धिमान हैं, आप धैर्यवान हैं, आप नायक हैं। रात और दिन की तरह आते-जाते रहते हैं। लेकिन महापुरुष इन से प्र्भवित् नहीं रहते। तब सुमंत्र ने रामजी की यात्रा का वर्णन किया, निषादराजजी ने सेवा की बात की। 

राम-सीता को भी सन्देश सुनाया और उत्तर में रामजी ने कहा- मेरे पिता से मेरा प्रणाम कहो, और कहो कि हम सब तुम्हारी महिमा से कुशल हैं। सीताजी ने संदेश दिया था कि - मैं अयोध्या नहीं आ सकती, मैं अपने पति के बिना नहीं रह सकती। मेरी सास और ससुर के चरणों में मेरा प्रणाम कहो। बोलते-बोलते सुमन्त्र की आवाज थम गई और वे शोक से व्याकुल हो उठे। राजा ने सुमंत्र का वचन सुनते ही हे राम-हे राम बोलते-बोलते धरती पर गिर पड़े और जल से मछली की ओर निकल पड़े। 

वे उसकी ओर बढ़ने लगे, आस-पास के सभी लोग भी विलाप करने लगे। कौशल्या भी रो रही थी लेकिन हाइयू राजा को आश्वस्त करने की कोशिश करने लगा। "महाराज, राम-वीर के महान सागर को पार करने के लिए, हिम्मत रखो, धीरज रखो, नहीं तो सब कुछ डूब जाएगा। वनवास की अवधि समाप्त होने पर राम अवश्य आयेंगे। राजा आखिरी वाक्य जानता था "राम जरूर वापस आएंगे" इतना । इतना कहकर राजा फिर बेहोश हो गया। आधी रात को अचानक उसे होश आया,

उसने आह भरी और कौशल्या से कहने लगा कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसी जन्म में उसकी मृत्यु हो जाती है। कौशल्याजी की बात सुनकर उनके मन में यह विचार आया कि इस प्रकार भी राजा के मन को आश्वस्त करना ही अच्छा है। दशरथ राजा कहते हैं - हे कौशल्या, अब मैं स्पष्ट रूप से देख सकता हूं - मैं अपने कर्मों का फल भोग रहा हूं।
मुझे अब याद आया कि मैंने अनजाने में एक घातक पाप किया था, जिसका फल अब मैं भुगत रहा हूँ। जाने-अनजाने पाप तो भोगने ही पड़ते हैं, लेकिन अनजाने में जहर खा लिया जाए तो उसकी मृत्यु हो जाती है। कौशल्याजी शांति से सुन रही
हैं और दशरथ राजा अपने पाप का अवसर बता रहे हैं।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Anjana was the mother of Hanuman ji. She was the wife of the monkey king Kesari. Going to give a little information about them.There was a nymph named Punjik Thala who danced in the court of Indra, it was the same nymph who

हनुमान  जी की माता थी अंजना। वह वानर  राजा केसरी   बाल वनिता महिला आश्रम की पत्नी थी। उनके बारे में थोड़ी जानकारी देने जा रहे हैैं। पुंजिक थला नाम की एक अप्सरा थी जो इंद्र के दरबार में नृत्य किया करती थी यह वही अप्सरा थी जो समुद्र मंथन के समय में निकली थी उस समय तीन अप्सराएं निकली थी उनमें से पुंजिक थला भी एक अप्सरा पुंजत्थला एक बार धरती लोक में आई और उन्होंने महा ऋषि दुर्वासा जो एक ऋषि थे और वह तपस्या कर रहे थे वह एक नदी के किनारे बैठे हुए थे और ध्यान मुद्रा में थे पुंजत्थल ने उन पर बार-बार पानी फेंका जिससे उनकी तपस्या भंग हो गई और तब उन्होंने पुंजिक थला को श्राप दे दिया कि तुम इसी समय वानरी हो जाओ और पुंजिक थला उसी समय वानरी बन गई और पेड़ों पर इधर उधर घूमने लगी देवताओं के बहुत विनती करने के बाद ऋषि ने उन्हें बताया की इनका दूसरा जन्म होगा और तुम वानरी ही रहोगी लेकिन अपनी इच्छा के अनुसार तुम अपना रूप बदल सकोगी। तभी केसरी सिंह नाम के एक राजा वहां पर एक मृग का शिकार करते हुए आए वह मृग घायल था और वह ऋषि के आश्रम में छुप गया ऋषि ने राजा केसरी से कहा कि तुम मेरे ...

मेरे बाबा घने दयालु है आज मांग के देख ले विश्वाश नही तो मेहंदीपुर में जा के देख ले तू सचे मन से मांगे गा वही तुझे मिल जावेगा वो बाला जी के जैसा पावन धाम कही न पावेगा वो बाबा का इक लड्डू चूरमा खा के देख ले विश्वाश नही तो मेहंदीपुर में जा के देख ले मने जय बाबा की जय बाबा की प्यारा लागे जय कार जिस पे नजर मेरे बाला जी की आज तलक भी न हारा उतम छोकर से भगत बाबा का हरा के देख ले विश्वाश नही तो मेहंदीपुर में जा के देख ले ,

Uthani Ekadashi 2022: देवउठनी एकादशी पर कर लें दूध-केसर का ये चमत्कारी उपाय, भगवान विष्णु की होगी विशेष कृपाकार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। इस बार देवउठनी एकादशी का पर्व 4 नवंबर शुक्रवार को मनाया जाने वाला है। इस दिन कुछ खास उपायों को जरूर करना चाहिए। By वनिता कासनियां पंजाबnaiduniaDev Uthani Ekadashi 2022: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को काफी शुभ माना गया है। यह व्रत भगवान विष्णु की पूजा आराधना के लिए समर्पित माना जाता है। ये व्रत भक्तों को विशेष फल प्रदान करने वाला होता है। पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। वहीं पूरे चार महीने बाद देवउठनी एकादशी के दिन वे जागते हैं। ऐसे में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। वहीं इस बार देवउठनी एकादशी का पर्व 4 नवंबर शुक्रवार को मनाया जाने वाला है। इस दिन कुछ खास उपायों को करने से भगवान विष्णु की कृपा हमेशा जातक पर बनी रहती ह देवउठनी एकादशी पर करें ये उपायदेवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी, देवउठनी ग्यारस आदि नामों से भी जाना जाता है। इस साल 4 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करना काफी शुभ माना जाता है। देवउठनी एकादशी पर व्रत और विधि-विधान से पूजा करने से भगवान प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं। आइए जानते हैं कि देवउठनी एकादशी पर किए जाने वाले उपाय कौन से हैं। देवउठनी एकादशी के शुभ दिन पर भगवान श्री हरि विष्णु का दूध और केसर से अभिषेक करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर कामना पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं। जो लोग आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं वे इस दिन पीपल के पेड़ पर जल अर्पित करें और शाम के समय पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। ऐसा करने से हर तरह के कर्ज से मुक्ति मिलती है।धन की कमी को दूर करने के लिए देवउठनी एकादशी पर श्री हरि विष्णु को पैसे अर्पित कर उन्हें अपने पर्स में रख लें। ऐसा करने से व्यक्ति को धन लाभ होता है। साथ ही कभी भी धन की कमी नहीं आती है। देवउठनी एकादशी के शुभ दिन व्यक्ति को भगवान विष्णु को तुलसी पत्र के साथ सफेद रंग की चीज का भोग लगाएं। ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

वनिता कासनियां पंजा Uthani Ekadashi 2022: देवउठनी एकादशी पर कर लें दूध-केसर का ये चमत्कारी उपाय, भगवान विष्णु की होगी विशेष कृपा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। इस बार देवउठनी एकादशी का पर्व 4 नवंबर शुक्रवार को मनाया जाने वाला है। इस दिन कुछ खास उपायों को जरूर करना चाहिए। By  वनिता कासनियां पंजाब Dev Uthani Ekadashi 2022:   हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को काफी शुभ माना गया है। यह व्रत भगवान विष्णु की पूजा आराधना के लिए समर्पित माना जाता है। ये व्रत भक्तों को विशेष फल प्रदान करने वाला होता है। पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। वहीं पूरे चार महीने बाद देवउठनी एकादशी के दिन वे जागते हैं। ऐसे में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। वहीं इस बार देवउठनी एकादशी का पर्व 4 नवंबर शुक्रवार को मनाया जाने वाला है। इस दिन कुछ खास उपायों को करने से भगवान विष्णु की कृपा हमेशा जातक प...