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श्री हनुमान चालीसा कितनी बार पढ़ना चाहिए?ब (ाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब) १. हनुमान चालीसा का 100 बार जप करने पर आपको सभी भौतिकवादी चीजों से मुक्ति मिल जाती है२.हनुमान चालीसा का 21 बार जाप करने से धन में वृद्धि होती है।३. हनुमान चालीसा का 19 बार जाप करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है।४.हनुमान चालीसा का 7 बार जाप करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।५.हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से भगवान हनुमान जी का आशीर्वाद मिलता है और आपको हर स्थिति में विजयी होने में मदद मिलती है।६.अगर आप अपने जीवन में एक साथ कई परेशानियों से परेशान है और हनुमान जी की विशेष कृपा पाना चाहते है तो सुबह के 4 बजे 7 बार हनुमान चालीसा का पाठ करे७.मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से हनुमान जी का आशीर्वाद मिलता है और मंगल दोष, साढ़े साती जैसे हर दोष का निवारण होता है।८.भगवान हनुमान जी का नाम जप करने से आपके आसपास एक सकारात्मक आभा का निर्माण होता है।९.राम नाम का जप या राम हनुमान का कोई भी राम भजन, हनुमान जी को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है क्योंकि वे भगवान श्री राम जी से सबसे अधिक प्रेम करते हैं।१०.यदि आप एक विशेष दोहा का जप करते हैंबल बुधि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकरयदि अध्ययन से पहले 11 बार इस दोहा का जप 21 दिनों तक लगातार कर लिया जाए तो अध्ययन के प्रति विधार्थियों की एकाग्रता बढ़ेगी११.भूत पिशाच निकट नहीं आवै महावीर जु नाम सुनावेअगर आप इस श्लोक का 27 बार जाप करेंगे तो आपके दिल से अनुचित डर खत्म हो जाएगा।और भी बहुत से लाभ आपको खास दोहा और चौपाई का जाप करने से मिलेगा।वनिता कासनियां पंजाबकहा जाता है कि हनुमान चालीसा के हर श्लोक और दोहे का 108 बार जाप करना भी बहुत अच्छा होता है।जय श्री राम 🙏हर हर महादेव 🙏🙏

श्री हनुमान चालीसा कितनी बार पढ़ना चाहिए? बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब १. हनुमान चालीसा का 100 बार जप करने पर आपको सभी भौतिकवादी चीजों से मुक्ति मिल जाती है २.हनुमान चालीसा का 21 बार जाप करने से धन में वृद्धि होती है। ३. हनुमान चालीसा का 19 बार जाप करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। ४.हनुमान चालीसा का 7 बार जाप करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ५.हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से भगवान हनुमान जी का आशीर्वाद मिलता है और आपको हर स्थिति में विजयी होने में मदद मिलती है। ६.अगर आप अपने जीवन में एक साथ कई परेशानियों से परेशान है और हनुमान जी की विशेष कृपा पाना चाहते है तो सुबह के 4 बजे 7 बार हनुमान चालीसा का पाठ करे ७.मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से हनुमान जी का आशीर्वाद मिलता है और मंगल दोष, साढ़े साती जैसे हर दोष का निवारण होता है। ८.भगवान हनुमान जी का नाम जप करने से आपके आसपास एक सकारात्मक आभा का निर्माण होता है। ९.राम नाम का जप या राम हनुमान का कोई भी राम भजन, हनुमान जी को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है क्योंकि वे भगवान श्री राम...

रामायण-रहस्य-94#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानमन्त्री सुमंत्र के दु:ख ने उन्हें इतना प्रभावित किया है कि उनकी आँखों की रौशनी फीकी पड़ गयी है, उनके कान बहरे हो गये हैं, उनकी बुद्धि बहरी हो गयी है, जीवित रहते हुए भी वे गूंगे हो गये हैं। ? कौशल्या मा, अगर बछड़े से मिलने के लिए गाय दौड़ती हुई आती है, तो मैं उन्हें क्या जवाब दूंगा? मैं महाराजा को कैसे आश्वस्त कर सकता हूं? मैं कैसे कह सकता हूं कि रामजी वन में रहे?रथ तमसा नदी के तट पर आया।लेकिन फिर भी वे अयोध्या में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं करते इसलिए पूरे दिन शहर के बाहर वे बैठ गए, और जब सांझ को अँधेरा हुआ, तो वे चुपके से नगर में प्रवेश कर गए और महल के किनारे पर चले गए। हुआ यूँ कि रामजी के वन जाने के बाद दशरथजी ने कहा- मैं कैकेयी के महल में नहीं रहना चाहता। मुझे कौशल महल में ले चलो। इसलिए उन्हें कौशल्या भवन में रखा गया था।सुमंत्र को देखकर दास इकट्ठे हो गए और उन्हें सूचना दी कि महाराजा कौशल्या महल में हैं। सुमंत्र अचेत अवस्था में दौड़ता हुआ प्रतीत होता है। उन्होंने दशरथ राजा को "राम-राम-सीता सीता" कहा।विलाप देखना। सुमंत्र को देख राजा की जान में जान आई, उसने उठकर सुमंत्र को गले से लगा लिया और पूछते हैं- सुमंत्र राम कहां है? सुमंत्रा की आंखों से आंसू छलक पड़े। राजा का दिल बैठ गया। हे सुमंत्र, मैं राम जेसे बेटे का पिता बनने के काबिल नहीं..तुम्हें मेरी ज़िंदगी चाहिए तो मुझे अभी या अभी राम दे दो राम के पास ले जाओ , नहीं तो मैं तुमसे सच कहता हूं, मैं जीना नहीं चाहता, मैं जी नहीं सकता। सुमंत्र राजा से कहता है, 'महाराजा, आप बुद्धिमान हैं, आप धैर्यवान हैं, आप नायक हैं। रात और दिन की तरह आते-जाते रहते हैं। लेकिन महापुरुष इन से प्र्भवित् नहीं रहते। तब सुमंत्र ने रामजी की यात्रा का वर्णन किया, निषादराजजी ने सेवा की बात की। राम-सीता को भी सन्देश सुनाया और उत्तर में रामजी ने कहा- मेरे पिता से मेरा प्रणाम कहो, और कहो कि हम सब तुम्हारी महिमा से कुशल हैं। सीताजी ने संदेश दिया था कि - मैं अयोध्या नहीं आ सकती, मैं अपने पति के बिना नहीं रह सकती। मेरी सास और ससुर के चरणों में मेरा प्रणाम कहो। बोलते-बोलते सुमन्त्र की आवाज थम गई और वे शोक से व्याकुल हो उठे। राजा ने सुमंत्र का वचन सुनते ही हे राम-हे राम बोलते-बोलते धरती पर गिर पड़े और जल से मछली की ओर निकल पड़े। वे उसकी ओर बढ़ने लगे, आस-पास के सभी लोग भी विलाप करने लगे। कौशल्या भी रो रही थी लेकिन हाइयू राजा को आश्वस्त करने की कोशिश करने लगा। "महाराज, राम-वीर के महान सागर को पार करने के लिए, हिम्मत रखो, धीरज रखो, नहीं तो सब कुछ डूब जाएगा। वनवास की अवधि समाप्त होने पर राम अवश्य आयेंगे। राजा आखिरी वाक्य जानता था "राम जरूर वापस आएंगे" इतना । इतना कहकर राजा फिर बेहोश हो गया। आधी रात को अचानक उसे होश आया,उसने आह भरी और कौशल्या से कहने लगा कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसी जन्म में उसकी मृत्यु हो जाती है। कौशल्याजी की बात सुनकर उनके मन में यह विचार आया कि इस प्रकार भी राजा के मन को आश्वस्त करना ही अच्छा है। दशरथ राजा कहते हैं - हे कौशल्या, अब मैं स्पष्ट रूप से देख सकता हूं - मैं अपने कर्मों का फल भोग रहा हूं।मुझे अब याद आया कि मैंने अनजाने में एक घातक पाप किया था, जिसका फल अब मैं भुगत रहा हूँ। जाने-अनजाने पाप तो भोगने ही पड़ते हैं, लेकिन अनजाने में जहर खा लिया जाए तो उसकी मृत्यु हो जाती है। कौशल्याजी शांति से सुन रहीहैं और दशरथ राजा अपने पाप का अवसर बता रहे हैं।

रामायण-रहस्य-94 #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान मन्त्री सुमंत्र के दु:ख ने उन्हें इतना प्रभावित किया है कि उनकी आँखों की रौशनी फीकी पड़ गयी है, उनके कान बहरे हो गये हैं, उनकी बुद्धि बहरी हो गयी है, जीवित रहते हुए भी वे गूंगे हो गये हैं। ? कौशल्या मा, अगर बछड़े से मिलने के लिए गाय दौड़ती हुई आती है, तो मैं उन्हें क्या जवाब दूंगा? मैं महाराजा को कैसे आश्वस्त कर सकता हूं? मैं कैसे कह सकता हूं कि रामजी वन में रहे? रथ तमसा नदी के तट पर आया। लेकिन फिर भी वे अयोध्या में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं करते इसलिए पूरे दिन शहर के बाहर  वे बैठ गए, और जब सांझ को अँधेरा हुआ, तो वे चुपके से नगर में प्रवेश कर गए और महल के किनारे पर चले गए। हुआ यूँ कि रामजी के वन जाने के बाद दशरथजी ने कहा- मैं कैकेयी के महल में नहीं रहना चाहता।  मुझे कौशल महल में ले चलो। इसलिए उन्हें कौशल्या भवन में रखा गया था। सुमंत्र को देखकर दास इकट्ठे हो गए और उन्हें सूचना दी कि महाराजा कौशल्या महल में हैं।  सुमंत्र अचेत अवस्था में दौड़ता हुआ प्रतीत होता है। ...

हिन्दू धर्म में माथे पर तिलक क्यों लगाया जाता है ?#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानसनातन #हिन्दू धर्म में तिलक धारण (लगाने) की परम्परा उतनी ही प्राचीन है जितने कि स्वयं भगवान श्रीमन्नारायण । शास्त्रों में जब भी भगवान श्रीमन्नारायण या श्रीकृष्ण का वर्णन मिलता है तो उनके ललाट पर कस्तूरी का तिलक अवश्य होता है—कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्ष:स्थले कौस्तुभं,नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणु: करे कंकणम्।हिन्दू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु, महेश और शक्ति—इन प्रमुख देवताओं के आधार पर मुख्य रूप से चार प्रकार के तिलक धारण करने का विधान है । शिवजी के उपासक भस्म से त्रिपुण्ड्र, विष्णु भक्त सुगन्धित द्रव्यों या पवित्र मिट्टी से त्रिशूल की आकृति वाला ऊर्ध्वपुण्ड्र और ब्रह्मा के भक्त एक सीधी रेखा का तिलक लगाते हैं । जो केवल भगवती के उपासक (शाक्त) हैं, वे कुमकुम या सिन्दूर की लाल बिन्दी (बिन्दु) का तिलक धारण करते हैं ।हिन्दू धर्म में माथे पर तिलक क्यों लगाया जाता है ?जब हमारे आराध्य, चाहें वह भगवान विष्णु हों या श्रीकृष्ण, श्रीराम हों या सदाशिव, सभी तिलकधारी हैं, तो आराधक कैसे बगैर तिलक के रह सकता है ? वैष्णव खड़े तिलक (ऊर्ध्वपुण्ड्र) की दो समानान्तर रेखाओं को श्रीमन्नारायण के दोनों चरणकमल मानते हैं। उनका विश्वास है कि मस्तक पर तिलक रूपी चरणकमल धारण करने से मृत्यु के बाद उन्हें ऊर्ध्वगति (विष्णुलोक) की प्राप्ति होगी ।शक्ति के उपासकों का बिन्दी लगाने के पीछे यह तर्क है कि शून्य (बिन्दी) से ही सृष्टि का उद्गम और विलय होता है । किसी अंक के साथ शून्य (जीरो) जोड़ देने से उस संख्या का महत्व बहुत बढ़ जाता है। जैसे १० के आगे तीन जीरो लगा दिए जाएं तो वह १०,००० हो जाता है । उसी प्रकार मस्तक पर धारण की गयी बिन्दी मनुष्य की तेजस्विता में वृद्धि कर उसके जीवन को ऊपर की ओर अर्थात् मोक्षगामी बना देती है।पूजा, भजन, ध्यान आदि में मन की शान्ति बहुत जरुरी है । अत: मन को शान्त और सात्विक रखने के लिए माथे पर चन्दन, कपूर, केसर आदि का लेप स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा माना गया है । ब्रह्मवैवर्तपुराण में कहा गया है—बिना तिलक लगाये किया गया कोई भी धार्मिक कार्य (स्नान, दान, तप, होम, पितृ कर्म, संध्या आदि) सफल नहीं होता है—स्नानं दानं तपो होमं दैवं च पितृ कर्मसु ।तत्सर्वं निष्फलं याति ललाटे तिलकं विना ।।बिना बिन्दी या तिलक का सूना माथा अपशकुन का प्रतीक माना जाता है । शास्त्रों में तो यहां तक माना गया है कि यात्रा पर या किसी विशेष कार्य पर जाते समय यदि कोई खाली मस्तक व्यक्ति सामने से आ जाए तो वह अपशकुन होता है । इसीलिए यात्रा पर जाते समय और किसी विशेष कार्य के लिए जाते समय तिलक धारण करना शुभ माना जाता है।तिलक लगाने के लाभ!!!!!!शास्त्रों में #तिलक नाभि से नीचे के अंगों को छोड़कर मस्तक, ग्रीवा, भुजा, बाहुमूल, हृदय व उदर आदि पर लगाये जाने का विधान है । दोनों भौंहों के मध्य तिलक लगाने के स्थान पर सुषुम्ना नाड़ी रहती है । अत: यह स्थान अनन्त शक्ति व ओज का केन्द्र माना गया है । इसी स्थान पर दिव्य तृतीय नेत्र होता है । योग साधना में ध्यान इसी स्थान पर लगाया जाता है । इस स्थान पर पित्त को सीमा से अधिक न बढ़ने देने व सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय रखने के लिए तिलक लगाने का विधान है ।कठोपनिषद् के अनुसार सुषुम्ना नाड़ी मस्तक के सामने से निकलती है । इस स्थान पर तिलक धारण करने से मनुष्य मोक्ष प्राप्त करता है।शरीर की पांचों ज्ञानेन्द्रियों (कान, नेत्र, जिह्वा, नाक और त्वचा) के करोड़ों रोमकूप ललाट के इसी स्थान पर रहते हैं जहां पुरुष तिलक और स्त्रियां बिन्दी लगाती हैं । यदि तिलक व बिन्दी को सही स्थान पर लगाया जाए तो शरीर के किसी भी द्वार से अशुभ और अनिष्ट मनुष्य के अंत:करण में उसी प्रकार प्रवेश नहीं कर पाते जैसे घर के प्रवेश द्वार पर स्थापित गणपति के नीचे से कोई अमंगल घर में प्रवेश नहीं कर पाता है।सौभाग्यवती स्त्रियों को कुमकुम व सिन्दूर का ही तिलक करना चाहिए । सिन्दूर में सर्वदोषनाशक शक्ति होती है । सिन्दूर में पारद और कुमकुम में हल्दी—ये दोनों ही रंजक पित्त को नियन्त्रित कर सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय और स्वस्थ रखते हैं ।तिलक लगाने से भाग्य चमकता है और दुर्भाग्य दूर होता है ।चन्दन, केसर, कस्तूरी का तिलक लगाना आंखों के लिए लाभप्रद है ।तिलक लगाना कान्ति व आयु को बढ़ाने वाला है । इसीलिए रक्षाबंधन और भाईदूज पर बहनें भाइयों की लम्बी आयु के लिए उनके माथे पर तिलक करती हैं ।तिलक किस वस्तु से लगाएं ?खड़ा तिलक (ऊर्ध्वपुण्ड्र)—खड़िया मिट्टी, गोपी चन्दन, केसर, चन्दन, कुमकुम, भस्म, और पवित्र मिट्टी (पर्वत की चोटी, पवित्र नदियों और समुद्र के तट, बांबी और तुलसी के वृक्ष की जड़ की मिट्टी) और जल से लगाया जा सकता है ।पड़ा या लेटा हुआ तिलक (त्रिपुण्ड्र)—यज्ञ की भस्म से लगाया जाता है ।चन्दन से दोनों प्रकार का तिलक लगाया जा सकता है । विशेष उत्सवों व शुभ कर्म के दौरान चन्दन का तिलक लगाना चाहिए । केवल अपने तिलक लगाने के लिए चन्दन न घिसें, पहले अपने आराध्य को अर्पण करने के बाद बचे हुए चंदन का तिलक स्वयं लगाना चाहिए ।मिट्टी से तिलक का महत्व!!!!!!मिट्टी और भस्म दुर्गन्ध और कीटाणुओं का नाश करते हैं इसलिए इनसे भी तिलक लगाने का विधान है । श्यामवर्ण की मिट्टी शान्तिदायिनी, रक्तवर्ण की मिट्टी वश में करने वाली, पीली मिट्टी लक्ष्मी देने वाली और सफेद मिट्टी धर्म में लगाने वाली होती है ।ऋतु के अनुसार द्रव्यों से तिलक!!!!!शास्त्रों में ऋतु के अनुसार भी तिलक लगाने की बात कही गयी है । सर्दी में केसर, कस्तूरी, गोरोचन आदि गर्म चीजों का तिलक लगाना चाहिए जिससे माथे पर पित्त सक्रिय बना रहे । गर्मी में कर्पूर मिला चन्दन का तिलक लगाने से सिरदर्द, रक्तचाप, आंखों में जलन आदि से बचाव होता है ।यदि किसी के पास तिलक के लिए ऊपर जो द्रव्य बताये गये हैं, वे नहीं हैं तो केवल शुद्ध जल से भी तिलक करने का विधान है ।#Vnita🙏🙏❤️तिलक कैसे लगाएं ?त्रिपुण्ड्र बायें नेत्र से दायें नेत्र तक ही लम्बा होना चाहिए । त्रिपुण्ड्र की रेखाएं बहुत लम्बी होने पर तप को और छोटी होने पर आयु को कम करती हैं ।उर्ध्वपुण्ड्र भौंहों के मध्य में ढाई अंगुल की लम्बाई का होना चाहिए ।भस्म मध्याह्न से पहले जल मिला कर, मध्याह्न में चंदन मिलाकर और सायंकाल सूखी भस्म ही त्रिपुण्ड्र रूप में लगानी चाहिए।

हिन्दू धर्म में माथे पर तिलक क्यों लगाया जाता है ? #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान सनातन #हिन्दू धर्म में तिलक धारण (लगाने) की परम्परा उतनी ही प्राचीन है जितने कि स्वयं भगवान श्रीमन्नारायण । शास्त्रों में जब भी भगवान श्रीमन्नारायण या श्रीकृष्ण का वर्णन मिलता है तो उनके ललाट पर कस्तूरी का तिलक अवश्य होता है— कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्ष:स्थले कौस्तुभं, नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणु: करे कंकणम्। हिन्दू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु, महेश और शक्ति—इन प्रमुख देवताओं के आधार पर मुख्य रूप से चार प्रकार के तिलक धारण करने का विधान है । शिवजी के उपासक भस्म से त्रिपुण्ड्र, विष्णु भक्त सुगन्धित द्रव्यों या पवित्र मिट्टी से त्रिशूल की आकृति वाला ऊर्ध्वपुण्ड्र और ब्रह्मा के भक्त एक सीधी रेखा का तिलक लगाते हैं । जो केवल भगवती के उपासक (शाक्त) हैं, वे कुमकुम या सिन्दूर की लाल बिन्दी (बिन्दु) का तिलक धारण करते हैं । हिन्दू धर्म में माथे पर तिलक क्यों लगाया जाता है ? जब हमारे आराध्य, चाहें वह भगवान विष्णु हों या श्रीकृष्ण, श्रीराम हों या सदाशिव...

*हनुमानजी की दिव्य उधारी!!!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान🙏🙏❤️*पढ़ कर आनन्द ही आनन्द होगा जी,*सब पर कर्जा हनुमान जी का,सब ऋणी हनुमानजी महाराज के।* *रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो, भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया। तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में बिदा करेंगे, लेकिन रामजी ने हनुमानजी को विदा ही नहीं किया,अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात सब गए हनुमानजी नहीं गए अयोध्या से!**अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमानजी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमानजी चले जाएं।**माता सीता बोलीं मैं तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था, वो तो हनुमानजी थे,जो प्रभु मुद्रिका लेके गए, और धीरज बंधवाया कि...!**कछुक दिवस जननी धरु धीरा।**कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।**निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।**तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥**मै तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए,आप किसी और से बुलवा लो।**अब बारी आई लक्षमण जी की तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था।**प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।**आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।**ये जो खड़ा है ना , वो हनुमानजी का लक्ष्मण है। मै कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमानजी अयोध्या से चले जाएं!**अब बारी आई भरत जी की, अरे! भरत जी तो इतना रोए, कि रामजी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझ पर, हनुमान जी का सब मिलके और लगवा दो!**और दूसरी बात ये कि...!**बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।* *अधम कवन जग मोहि समाना॥**मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमानजी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि...!**रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।**सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥**मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमानजी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।**अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुघ्न भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुघ्न भैया बोल पड़े मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमानजी को अयोध्या से निकालने के लिए, जिन्होंने ने माता सीता, लक्षमण भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो! किसी अच्छे काम के लिए कहते तो बोल भी देता। मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।**अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार,* *माता सीता ने कहा प्रभु! आप तो तीनों लोकों ये स्वामी है, और देखती हूं आप हनुमानजी से सकुचाते है।और आप खुद भी कहते हो कि...!**प्रति उपकार करौं का तोरा।* *सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥**आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु! राघवजी ने कहा देवी कर्जदार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो**सनमुख होइ न सकत मन मोरा**देवी! हनुमानजी का कर्जा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ्य राम में नहीं है, जो "राम नाम" में है। क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न...! यदि सुनना चाहती हो तो सुनो हनुमानजी का कर्जा कैसे उतारा जा सकता है।**पहले हनुमान विवाह करें*,*लंकेश हरें इनकी जब नारी।**मुदरी लै रघुनाथ चलै,निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।**अायि कहें, सुधि सोच हरें, तन से, मन से होई जाएं उपकारी।**तब रघुनाथ चुकायि सकें, ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।**देवी! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि...!**"सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं"**मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमानजी भी कुछ मांग लें।**दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए,सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमानजी क्या मांगेंगे, और रामजी क्या देंगे।**रामजी ने हनुमान जी से कहा! सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद,अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ...?**हनुमानजी बोले! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो...!**"तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना"**तो फिर यदि मै दो पद मांगू तो..?**सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमानजी भी ठीक ही कह रहे हैं। रामजी ने कहा! ठीक है, मांग लो, सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमानजी का कर्जा चुकता हुआ।**हनुमानजी ने कहा! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमे राजमद की शंका हो, तो फिर...! आप को कौन सा पद चाहिए...?**हनुमानजी ने रामजी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।**हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।**नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।।**जानकी जी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए राघवजी बोले, लो उतर गया हनुमानजी का कर्जा!**और अभी तक जिसको बोलना था, सब बोल चुके है, अब जो मै बोलता हूं उसे सब सुनो, रामजी भरत भैया की तरफ देखते हुए बोले...!*#Vnita🙏🙏❤️*"हे! भरत भैया' कपि से उऋण हम नाही"*........*हम चारों भाई चाहे जितनी बार जन्म लेे लें, #हनुमानजी से उऋण नही हो सकते।* *जय #श्री #हनुमान जी #महाराज की जय*

*हनुमानजी की दिव्य उधारी!!!!!!!! #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान🙏🙏❤️ *पढ़ कर आनन्द ही आनन्द होगा जी,*सब पर कर्जा हनुमान जी का,सब ऋणी हनुमानजी महाराज के।*  *रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो, भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया। तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में बिदा करेंगे, लेकिन रामजी ने हनुमानजी को विदा ही नहीं किया,अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात सब गए हनुमानजी नहीं गए अयोध्या से!* *अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमानजी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमानजी चले जाएं।* *माता सीता बोलीं मैं तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था, वो तो हनुमानजी थे,जो प्रभु मुद्रिका लेके गए, और धीरज बंधवाया कि...!* *कछुक दिवस जननी धरु धीरा।* *कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।* *निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।* *तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥* *मै तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जान...

मंगलवार विशेष,अष्ट सिद्धि के दाता हनुमानजी!!!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान 🙏🙏❤️हनुमानजी जन्मजात महान सिद्ध योगी हैं । उनके पिता केसरी ने हनुमानजी को प्राणायाम या प्राण-विद्या की साधना गर्भ में ही करा दी थी; जिस तरह अभिमन्यु को गर्भ में ही चक्रव्यूह-भेदन का ज्ञान हो गया था । हनुमानजी का चरित्र उस योगी का है जिसने प्राणशक्ति को वशीभूत करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है । तभी तो पैदा होते ही वे भयंकर भूख से पीड़ित होकर उगते हुए सूर्य को फल समझ कर उसे खाने के लिए आकाश में उछल कर सूर्यमण्डल तक पहुंच गए थे । ऐसी सामर्थ्य किसी महान योगी में ही हो सकती है ।श्रीराम-वल्लभा सीताजी ने हनुमानजी की भक्ति-भावना से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया—‘मारुतिनंदन ! अष्ट सिद्धियां तुम्हारे करतलगत हो जाएं और तुम जहां कहीं भी रहोगे, वहीं मेरी आज्ञा से सम्पूर्ण भोग (निधियां) तुन्हारे पास उपस्थित हो जाएंगे ।’अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ।अस वर दीन्ह जानकी माता ।।अणिमा, महिमा आदि सभी सिद्धियां अपने उत्कृष्ट रूप में हनुमानजी में व्याप्त हैं; इसीलिए हनुमानजी अपने सच्चे उपासक को इन सिद्धियों से समृद्ध कर देते हैं ।अमरकोश में अष्ट सिद्धियां इस प्रकार बतायी गयी हैं—अणिमा महिमा चैव गरिमा लघिमा तथा ।प्राप्ति: प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्टसिद्धय:।।अर्थात्—(1) अणिमा (2) महिमा (3) गरिमा (4) लघिमा (5) प्राप्ति (6) प्राकाम्य (7) ईशित्व और (8) वशित्व—ये अष्ट सिद्धियां हैं । हनुमानजी का जीवन केवल ‘राम काज’ के लिए है; जानते हैं कि हनुमानजी ने राम काज के लिए इन सिद्धियों का कैसे प्रयोग किया ? (1) अणिमा—इस सिद्धि से शरीर को अणु जितना छोटा बनाया जा सकता है । सीताजी का पता लगाने के लिए लंका जाते समय सुरसा के विशाल शरीर और मुख को देखकर हनुमानजी ने अत्यन्त लघु रुप धारण कर लिया । लंका में प्रवेश करते समय हनुमानजी ने मशक के समान अति लघुरूप धारण किया–मसक समान रूप कपि धरी ।लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी ।। (मानस ५।४।१)अशोक वाटिका में सीताजी के समक्ष प्रकट होते समय हनुमानजी के रूप का ‘श्रीरंगनाथ रामायण’ में इस प्रकार वर्णन किया गया है–‘हनुमानजी अंगुष्ठमात्र का आकार ग्रहण कर उस अशोक वृक्ष पर चढ़ गए । बालक के रूप में वटवृक्ष के पत्रों में शयन करने वाले भगवान विष्णु के समान वे श्रेष्ठ वानर उस वृक्ष की घनी शाखाओं में बड़ी कुशलता के साथ छिपकर बैठ गए और उन विशालाक्षी सीताजी को बार-बार ध्यान से देखने लगे ।’(2) महिमा—इस सिद्धि से देह को चाहे जितना बड़ा या भारी बनाया जा सकता है । जब समुद्र पार करते समय सुरसा हनुमानजी को निगलने चली तो वे सौ योजन आकार वाले हो गए । हनुमानजी ने इसी सिद्धि से समुद्र लांघते समय अपने शरीर को पर्वताकार बनाया था—जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा ।तासु दून कपि रूप देखावा ।। (मानस ५।१।५)हनुमानजी सीताजी से कहते हैं—‘वानर-सेनाओं के साथ आकर श्रीराम लंका को क्षण भर में भस्म कर देंगें ।’तब सीताजी कहती हैं—‘तुम तो अत्यंत लघु शरीर वाले हो, अन्य भालू-वानर भी तुम्हारी तरह लघुकाय ही होंगे, फिर वे ऐसे विशाल शरीर वाले राक्षसों से कैसे लड़ेंगे ?’ उस समय हनुमानजी ने स्वर्ण-शैल के समान विशाल रूप धारण कर अपनी शक्ति का परिचय दिया—कनक भूधराकार सरीरा ।समर भयंकर अतिबल बीरा ।। (मानस ५।१५।४)(3) गरिमा—एक बार हनुमानजी गंधमादन पर्वत पर अपनी पूंछ फैलाकर लेटे हुए थे । उसी समय अपने बल के गर्व में चूर भीमसेन वहां आए । हनुमानजी ने उनसे कहा—‘बुढ़ापे के कारण मैं स्वयं उठने में असमर्थ हूँ, कृपया तुम मेरी इस पूंछ को हटाकर आगे बढ़ जाओ । भीमसेन हंसते हुए बायें हाथ से हनुमानजी की पूंछ हटाने लगे पर वह टस-से-मस नहीं हुई । भीमसेन हनुमानजी का विन्ध्य पर्वत के समान अत्यन्त भयंकर और अद्भुत शरीर देखकर घबरा गए और लज्जा से मुख नीचा कर कपिराज से क्षमा मांगने लगे । यहां हनुमानजी की गरिमा सिद्धि परिलक्षित होती है ।(4) लघिमा—इस सिद्धि के बल से शरीर को रुई से भी हलका और हवा में तैरने लायक बनाया जा सकता है । लंका-दहन के समय हनुमानजी का आकार तो अत्यंत विशाल था पर वे इतने हल्के थे कि वे शीघ्र ही राक्षसों के एक घर से दूसरे घर तक पहुंच जाते थे—देह बिसाल परम हरुआई ।मंदिर ते मंदिर चढ़ धाई ।। (मानस ५।२५।१)(5) प्राप्ति—इस सिद्धि से साधक को मनोवांछित पदार्थ की प्राप्ति हो जाती है । यद्यपि सीताजी की खोज के लिए अनेकों भालू व वानर चारों दिशाओं में भेजे गए; परन्तु हनुमानजी को ही लंका में पहुंचने के बाद अल्प समय में ही सीताजी का दर्शन हुआ ।(6) प्राकाम्य—प्राकाम्य नामक सिद्धि में इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर लेना और कहीं भी पहुंच जाना संभव होता है ।▪️किष्किन्धा के लिए प्रस्थान करते समय सीताजी से चूड़ामणि लेने से पहले उनका विश्वास प्राप्त करने के लिए हनुमानजी ने अपना विश्वरूप दिखाया जो विन्ध्याचल के समान विशाल दीख पड़ता था ।▪️श्रीरामचरितमानस के अनुसार किष्किन्धा में श्रीराम से मिलने हनुमानजी विप्र-वेष धारण करके गए थे–‘विप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ ।’▪️हनुमानजी ने विप्ररूप धारण कर ही विभीषण से भेंट की थी–बिप्र रूप धरि बचन सुनाए ।सुनत बिभीषण उठि तहँ आए ।। (मानस ५।५।३)▪️अध्यात्म रामायण के अनुसार हनुमानजी नन्दि ग्राम में भरतजी को भगवान श्रीराम के आगमन का संदेश सुनाने मनुष्य-शरीर धारणकर गए थे ।(7) ईशिता—माया और उसको कार्यों को इच्छानुसार संचालित करना ईशिता नाम की सिद्धि है । हनुमानजी प्रभु श्रीराम की वानर और भालुओं की सेना के अद्वितीय सेनानायक थे और साथ ही परम भक्त भी थे । वे देव, दानव और मानव आदि समस्त प्राणियों के लिए अजेय थे । जब मेघनाद ने हनुमानजी पर ब्रह्माजी द्वारा दिया गया अस्त्र चलाया, तब उस ब्रह्मास्त्र की महिमा रखने के लिए वे स्वयं उसमें बंध गए थे ।(8) वशिता—इस सिद्धि से कर्मों और विषय-भोगों में आसक्त न होने की सामर्थ्य प्राप्त होती है । हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचारी और पूर्ण जितेन्द्रिय थे । रावण के अंत:पुर में अस्त-व्यस्त अवस्था में सोई हुई स्त्रियों को देखने के बाद हनुमानजी के ये वचन उनके इन्द्रियजय ( जितेन्द्रियत्व) #सिद्धि को दर्शाते हैं—‘‘माता सीता स्त्रियों में ही मिलेंगी, इसी भावना से मैंने रावण के अंत:पुर में प्रवेश किया था । मैं तो माता जानकी को ढूंढ़ रहा था, किसी नारी के सौन्दर्य पर तो मेरी दृष्टि नहीं गई और ना ही मेरे मन में कोई विकार आया । ये जो स्त्रियों के अर्धनग्न देह मुझे देखने पड़े, ये तो मेरी दृष्टि में शव के समान ही थे, फिर मेरा अखण्ड ब्रह्मचर्य का व्रत कैसे भंग हो सकता है ?’#गोस्वामी #तुलसीदासजी ने #हनुमान #चालीसा में कहा है—जो यह पढ़े हनुमान चालीसा ।होय सिद्ध साखी #गौरीसा ।।अर्थात्—हनुमान चालीसा के नित्य पढ़ने मात्र से #हनुमानजी भक्त को समस्त #सिद्धियां प्रदान कर देते हैं । ऐसा मैं भगवान शिव का साक्षी देकर कहती हूँ ।

मंगलवार विशेष,अष्ट सिद्धि के दाता हनुमानजी!!!!!!!! #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान 🙏🙏❤️ हनुमानजी जन्मजात महान सिद्ध योगी हैं । उनके पिता केसरी ने हनुमानजी को प्राणायाम या प्राण-विद्या की साधना गर्भ में ही करा दी थी; जिस तरह अभिमन्यु को गर्भ में ही चक्रव्यूह-भेदन का ज्ञान हो गया था ।  हनुमानजी का चरित्र उस योगी का है जिसने प्राणशक्ति को वशीभूत करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है । तभी तो पैदा होते ही वे भयंकर भूख से पीड़ित होकर उगते हुए सूर्य को फल समझ कर उसे खाने के लिए आकाश में उछल कर सूर्यमण्डल तक पहुंच गए थे । ऐसी सामर्थ्य किसी महान योगी में ही हो सकती है । श्रीराम-वल्लभा सीताजी ने हनुमानजी की भक्ति-भावना से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया— ‘मारुतिनंदन ! अष्ट सिद्धियां तुम्हारे करतलगत हो जाएं और तुम जहां कहीं भी रहोगे, वहीं मेरी आज्ञा से सम्पूर्ण भोग (निधियां) तुन्हारे पास उपस्थित हो जाएंगे ।’ अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता । अस वर दीन्ह जानकी माता ।। अणिमा, महिमा आदि सभी सिद्धियां अपने उत्कृष्ट रूप में हनुमानजी में ...

आज मंगलवार है, हनुमानजी महाराज का दिन है। आज हम आपको बतायेगें,अत्यन्त फलदायी हैं हनुमानजी के 108 नाम!!!!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानसंसार में ऐसे तो उदाहरण हैं जहां स्वामी ने सेवक को अपने समान कर दिया हो, किन्तु स्वामी ने सेवक को अपने से ऊंचा मानकर सम्मान दिया है, यह केवल श्रीरामचरित्र में ही देखने को मिलता है । श्रीरामचरितमानस में जितना भी कठिन कार्य है, वह सब हनुमानजी द्वारा पूर्ण होता है । मां सीता की खोज, लक्ष्मणजी के प्राण बचाना, लंका में संत्रास पैदा करना, अहिरावण-वध, श्रीराम-लक्ष्मण की रक्षा–जैसे अनेक कार्य हनुमानजी ने किए । आज भी हनुमानजी को जो करुणहृदय से पुकारता है, हनुमानजी उसकी रक्षा अवश्य करते हैं। कितने भी संकट में कोई हो, हनुमानजी का नाम उसे त्राण देता है ।हे रामदूत! हे पवनपुत्र! हे संकटमोचन! हे हनुमान !तुम दुष्टों के हो कालरूप, तुम महाबली, तुम ओजवान ।।जनकसुता के कष्ट हरे सब, रावण का मद चूर किया ।प्रेम-भाव से तुम्हें पुकारा, तुमने संकट दूर किया ।।मेरे अंतर में प्रतिदिन ही, गूंजे तेरा अमर गान ।हे रामदूत! हे पवनपुत्र! हे संकटमोचन! हे हनुमान! (श्रीअनूपकुमारजी गुप्त ‘अनूप’)भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भक्तगण हनुमानजी की आराधना बड़े ही श्रद्धा से करते हैं। हनुमानजी की जाग्रत देवता के रूप में मान्यता है; इसलिए इनकी आराधना से तत्काल फल की प्राप्ति होती है ।अष्टोत्तरशतनाम (१०८ नाम) का महत्व!!!!!भगवान के पूजन व अर्चन में अष्टोत्तरशतनाम व सहस्त्रनाम का अत्यधिक महत्त्व है। विशेष कामनाओं की पूर्ति के लिए अष्टोत्तरशत नामावली का पाठ या विशेष सामग्री द्वारा १०८ नामों से पूजा-अर्चना की शास्त्रों में बहुत महिमा बताई गयी है। इन नामों का पाठ अनन्त फलदायक, सभी अमंगलों का नाश करने वाला, स्थायी सुख-शान्ति को देने वाला, अंत:करण को पवित्र करने वाला और भगवान की भक्ति को बढ़ाने वाला है। यहां सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाले हनुमानजी के अष्टोत्तरशत नाम दिए जा रहे हैं–हनुमानजी के प्रसिद्ध १०८ नाम अष्टोत्तरशत नामावली!!!!!!!!!!हनुमानजी के नाम स्मरण से ही बुद्धि, बल, यश, धीरता, निर्भयता, आरोग्य, सुदृढ़ता और बोलने में महारत प्राप्त होती है और मनुष्य के अनेक रोग दूर हो जाते हैं । भूत-प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस उनके नाम लेने मात्र से ही भाग जाते हैं१. ॐ अंजनीगर्भसम्भूताय नम:२. ॐ वायुपुत्राय नम:३. ॐ चिरंजीवने नम:४. ॐ महाबलाय नम:५. ॐ कर्णकुण्डलाय नम:६. ॐ ब्रह्मचारिणे नम:७. ॐ ग्रामवासिने नम:८. ॐ पिंगकेशाय नम:९. ॐ रामदूताय नम:१०. ॐ सुग्रीवकार्यकर्त्रे नम:११. ॐ बालिनिग्रहकारकाय नम:१२. ॐ रुद्रावताराय नम:१३. ॐ हनुमते नम:१४. ॐ सुग्रीवप्रियसेवकाय नम:१५. ॐ सागरक्रमणाय नम:१६. ॐ सीताशोकनिवारणाय नम:१७. ॐ छायाग्रहीनिहन्त्रे नम:१८. ॐ पर्वताधिश्रिताय नम:१९. ॐ प्रमाथाय नम:२०. ॐ वनभंगाय नम:२१. ॐ महाबलपराक्रमाय नम:२२. ॐ महायुद्धाय नम:२३. ॐ धीराय नम:२४. ॐ सर्वासुरमहोद्यताय नम:२५. ॐ अग्निसूक्तोक्तचारिणे नम:२६. ॐ भीमगर्वविनाशकाय नम:२७. ॐ शिवलिंगप्रतिष्ठात्रे नम:२८. ॐ अनघाय नम:२९. ॐ कार्यसाधकाय नम:३०. ॐ वज्रांगाय नम:३१. ॐ भास्करग्रसाय नम:३२. ॐ ब्रह्मादिसुरवन्दिताय नम:३३. ॐ कार्यकर्त्रे नम:३४. ॐ कार्यार्थिने नम:३५. ॐ दानवान्तकाय नम:३६. ॐ नाग्रविद्यानां पण्डिताय नम:३७. ॐ वनमाल्यसुरान्तकाय नम:३८. ॐ वज्रकायाय नम:३९. ॐ महावीराय नम:४०. ॐ रणांगणचराय नम:४१. ॐ अक्षासुरनिहन्त्रे नम:४२. ॐ जम्बूमालीविदारणे नम:४३. ॐ इन्द्रजीतगर्वसंहन्त्रे नम:४४. ॐ मन्त्रीनन्दनघातकाय नम:४५. ॐ सौमित्रप्राणदाय नम:४६. ॐ सर्ववानररक्षकाय नम:४७. ॐ संजीवनवनगोद्वाहिने नम:४८. ॐ कपिराजाय नम:४९. ॐ कालनिधये नम:५०. ॐ दधिमुखादिगर्वसंहन्त्रे नम:५१. ॐ धूम्रविदारणाय नम:५२. ॐ अहिरावणहन्त्रे नम:५३. ॐ दोर्दण्डशोभिताय नम:५४. ॐ गरलागर्वहरणाय नम:५५. ॐ लंकाप्रासादभंजकाय नम:५६. ॐ मारुताय नम:५७. ॐ अंजनीवाक्यसाधकाय नम:५८. ॐ लोकधारिणे नम:५९. ॐ लोककर्त्रे नम:६०. ॐ लोकदाय नम:६१. ॐ लोकवन्दिताय नम:६२. ॐ दशास्यगर्वहन्त्रे नम:६३. ॐ फाल्गुनभंजकाय नम:६४. ॐ किरीटीकार्यकर्त्रे नम:६५. ॐ दुष्टदुर्जयखण्डनाय नम:६६. ॐ वीर्यकर्त्रे नम:६७. ॐ वीर्यवर्याय नम:६८. ॐ बालपराक्रमाय नम:६९. ॐ रामेष्ठाय नम:७०. ॐ भीमकर्मणे नम:७१. ॐ भीमकार्यप्रसाधकाय नम:७२. ॐ विरोधिवीराय नम:७३. ॐ मोहानासिने नम:७४. ॐ ब्रह्ममन्त्रये नम:७५. ॐ सर्वकार्याणां सहायकाय नम:७६. ॐ रुद्ररूपीमहेश्वराय नम:७७. ॐ मृतवानरसंजीवने नम:७८. ॐ मकरीशापखण्डनाय नम:७९. ॐ अर्जुनध्वजवासिने नम:८०. ॐ रामप्रीतिकराय नम:८१. ॐ रामसेविने नम:८२. ॐ कालमेघान्तकाय नम:८३. ॐ लंकानिग्रहकारिणे नम:८४. ॐ सीतान्वेषणतत्पराय नम:८५. ॐ सुग्रीवसारथये नम:८६. ॐ शूराय नम:८७. ॐ कुम्भकर्णकृतान्तकाय नम:८८. ॐ कामरूपिणे नम:८९. ॐ कपीन्द्राय नम:९०. ॐ पिंगाक्षाय नम:९१. ॐ कपिनायकाय नम:९२. ॐ पुत्रस्थापनकर्त्रे नम:९३. ॐ बलवते नम:९४. ॐ मारुतात्मजाय नम:९५. ॐ रामभक्ताय नम:९६. ॐ सदाचारिणे नम:९७. ॐ युवानविक्रमोर्जिताय नम:९८. ॐ मतिमते नम:९९. ॐ तुलाधारपावनाय नम:१००. ॐ प्रवीणाय नम:१०१. ॐ पापसंहारकाय नम:१०२. ॐ गुणाढ्याय नम:१०३. ॐ नरवन्दिताय नम:१०४. ॐ दुष्टदानवसंहारिणे नम:१०५. ॐ महायोगिने नम:१०६. ॐ महोदराय नम:१०७. ॐ रामसन्मुखाय नम:१०८. ॐ रामपूजकाय नम:#Vnita🙏🙏❤️#हनुमानजी की ये अष्टोत्तरशतनामावली आज के भौतिक #युग में मनुष्य के कमजोर होते हुए विश्वास को पुर्नजीवित करने में संजीवनी बूटी का काम करेगी और विभिन्न संतापों से अशान्त #मन को शान्त करने में सहायक होगी।

आज मंगलवार है, हनुमानजी महाराज का दिन है। आज हम आपको बतायेगें,अत्यन्त फलदायी हैं हनुमानजी के 108 नाम!!!!!!!!! #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान संसार में ऐसे तो उदाहरण हैं जहां स्वामी ने सेवक को अपने समान कर दिया हो, किन्तु स्वामी ने सेवक को अपने से ऊंचा मानकर सम्मान दिया है, यह केवल श्रीरामचरित्र में ही देखने को मिलता है । श्रीरामचरितमानस में जितना भी कठिन कार्य है, वह सब हनुमानजी द्वारा पूर्ण होता है । मां सीता की खोज, लक्ष्मणजी के प्राण बचाना, लंका में संत्रास पैदा करना, अहिरावण-वध, श्रीराम-लक्ष्मण की रक्षा–जैसे अनेक कार्य हनुमानजी ने किए । आज भी हनुमानजी को जो करुणहृदय से पुकारता है, हनुमानजी उसकी रक्षा अवश्य करते हैं। कितने भी संकट में कोई हो, हनुमानजी का नाम उसे त्राण देता है । हे रामदूत! हे पवनपुत्र! हे संकटमोचन! हे हनुमान ! तुम दुष्टों के हो कालरूप, तुम महाबली, तुम ओजवान ।। जनकसुता के कष्ट हरे सब, रावण का मद चूर किया । प्रेम-भाव से तुम्हें पुकारा, तुमने संकट दूर किया ।। मेरे अंतर में प्रतिदिन ही, गूंजे तेरा अमर गान ।...