हनुमान
भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार। भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त। अमर।
भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार। भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त। अमर।
अन्य प्रयोगों के लिए, हनुमान (बहुविकल्पी) देखें।
हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्यरामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं।[1] रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है।
हनुमान | |
शक्ति, ज्ञान, भक्ति एवं विजय के भगवान, बुराई के सर्वोच्च विध्वंसक, भक्तों के रक्षक | |
हनुमान जी की प्रतिमा | |
संबंध | वानर, रुद्र अवतार, राम के भक्त |
ग्रह | पृथ्वी |
मंत्र | ॐ श्री हनुमते नमः |
अस्त्र | गदा |
जीवनसाथी | अविवाहित |
माता-पिता |
|
सवारी | अज्ञात |
ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था।[2]
इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नंदन" (हवा का बेटा) हैं।
हनुमान प्रतिमा
हनुमान के द्वारा सूर्य को फल समझना
हनुमान सूरज को फल मानते हुए पकड़ने के लिए आगे बढ़ते हैं।
इनके जन्म के पश्चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।"
राहु की यह बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई भी प्राणी साँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इसके अंग को हानि नहीं कर सकता। इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये।
हनुमान त्रिशिरा का वध करते हुए।
हनुमान का नामकरण
इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत में हनु) टूट गई थी। इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि।[3]
हनुमान जी का रुप
हिँदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है। उनके कंधे पर जनेऊ लटका रहता है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनकी वानर के समान लंबी पूँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
विकिमीडिया कॉमन्स पर हनुमान से सम्बन्धित मीडिया है।
- Dedicated Website On Hanuman
- Lord Hanuman Information
- Hanuman World - The Online Home of Indian Culture for Young People Jai Shri ram
- All Lord Hanuman related contents in Hindi
सन्दर्भ
- ↑ तनूरुहपदांते तु रुद्रावतार संवदेत्। । लंकापुरी ततः पश्चाद्दहनोदधिलंघन। । ७४-७४। । नारदपुराणम्- पूर्वार्धः/अध्यायः ७४
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 दिसंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 मई 2014.
- ↑ "हनुमान जी के 12 नाम". आज तक. मूल से क्तू्त
By समाजसेवी वनिता पंजाब
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें